खेती की प्रक्रिया के अनुसार निम्नलिखित विकल्पों को अनुक्रम में व्यवस्थित कीजिए।
1. भूमि को तैयार विकल्पों की पैदावार विकल्पों की पैदावार करना
2. खाद डालना
3. बीज बोना
4. कटाई
5. सिंचाई
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सुल्तानपुर के बल्दीराय में केले की खेती मुफीद: परंपरागत खेती छोड़ केले की पैदावार से मुनाफा कमा रहे किसान, बताया- गेहूं और धान की अपेक्षा मिल रहा अधिक लाभ
सेहत के लिए फायदेमंद केला अब किसानों की माली हालात सुधारने में मददगार साबित हो रहा है। किसानों को केले की खेती खूब भा रही है। केले की खेती से किसानों को अच्छा फायदा हो रहा है। जिले से लेकर गांव तक किसान प्रमुख रूप से धान गेहूं व गन्ना की खेती करते हैं।
कुछ सालों से किसानों को परंपरागत खेती से अपेक्षित फायदा विकल्पों की पैदावार नहीं हो रहा है। गेहूं और धान की फसलों में लागत ज्यादा लग रही है और उसका दाम कम मिल रहा है।गन्ने की फसलों का भी यही हाल है। गन्ने का मूल्य का भुगतान समय से नहीं हो पाता। इसके चलते किसानों का इन फसलों से मोहभंग हो रहा है। ऐसे हालात में किसान दूसरे विकल्प तलाश रहे थे। ऐसे ही विकल्पों में केले की खेती भी है। किसानों को केले की खेती से काफी फायदा हो रहा है।
जिले के भैदया,लंभुआ,बल्दीराय,धनपतगंज,दुबेपुर,समेत किसान केले की खेती कर रहे हैं। सेवरा गांव के किसान चंद्रशेखर उपाध्याय कई साल से केले की खेती कर रहे हैं। उनका कहना है इसको बेच कर भी परेशानी नहीं होती है व्यापारी घर से ही खरीद कर ले जाते हैं। खास बात यह है कि केले की खेती में ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है केले का पौधा जुलाई माह में 2 से ढाई मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। उद्यान विभाग में ऑनलाइन आवेदन करने पर केले की खेती के लिए अनुदान भी मिला था।
सेवरा,ऐंजर व देवरा गांव में किसान बड़े पैमाने पर केले की खेती करते हैं।देवरा के चंद्रनाथ पांडेय ने 5 बीघे में केले की खेती कराई है। गांव के जयसिंह नारायण तिवारी 6 बीघा के केले की खेती की है। सेवरा विकल्पों की पैदावार के अवधेश पांडे ने 5 बीघा पूरे सुकाल तुलसीपुर निवासी नंदकिशोर यादव ने 30 बीघा सेवरा के विनय तिवारी ने दो बीघा विजयपाल ने पांच बीघा पूरे बरोरी गांव निवासी मूल शंकर उपाध्याय ने दो बीघा ऐंजर निवासी राजेश दुबे ने 2 बीघा सेवरा के जयभान दो बीघा देवरा के ईदु में एक बीघा स्वामीनाथ यादव ने 2 बीघा रुपेश यादव ने 2 बीघा पंकज यादव ने 2 बीघा अरविंद ने 4 बीघा देवरा गांव शिवनारायण पाठक ने दो बीघा केले की खेती की है।
जमीन परती रह जाने की आशंका: सुखाड़ में धान का विकल्प बनेगी दलहन, तिलहन और सब्जी की फसल, तैयारी शुरू
इस साल के मानसून सीजन में बेहद कम बारिश के चलते धान की खेती आधी भी नहीं हो पाएगी ऐसे में लगभग 50 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन परती रह जाने की आशंका है। किसानों का जनजीवन कम से कम प्रभावित हो इसके लिए कृषि विभाग वैकल्पिक खेती पर जोर दे रहा है। इसकी तैयारियां शुरू कर दी गई विकल्पों की पैदावार है। जिले में वैकल्पिक खेती का लक्ष्मी लगभग निर्धारित हो गया है।
करीब 60 हजार हेक्टेयर में वैकल्पिक खेती कराने की योजना है। इसमें करीब 55 हजार हेक्टेयर में दलहन तिलहन और सब्जी की फसल उपजाने जाने का लक्ष्य जबकि 5 से 10 हजार हेक्टेयर में पशु चारा उपजाने का लक्ष्य है। इन फसलों के लिए सरकार निःशुल्क या अनुदानित दर पर बीज उपलब्ध कराएगा । अभी यह तय होना बाकी है। फिलहाल जिले से स्थिति का आकलन कर लक्ष्य प्राप्त किया गया है।
जिला कृषि विभाग द्वारा भेजे गए रिपोर्ट के अनुसार धान के विकल्प के तौर पर सबसे ज्यादा खेती अरहर, मक्का और उड़द की होगी। फिलहाल 53,994 हेक्टेयर में मक्का अरहर उड़द तोड़िया सरसों मटर भिंडी मूली और पालक के उत्पादन के लिए बीज की डिमांड भेज दी गई है।
अब धान रोपनी का एक सप्ताह समय ही बचा
अगस्त के प्रथम सप्ताह तक रोपनी करने का समय माना जाता है। कृषि विभाग अगस्त के प्रथम सप्ताह तक बारिश होने का इंतजार कर रहा है। एक सप्ताह बारिश नहीं होने की स्थिति में वैकल्पिक फसल लगाने के अलावा किसानों के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा। इसके बाद वैकल्पिक फसल के बीज के वितरण की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
वैकल्पिक फसल की वेरायटी 90 से 100 दिन के अंदर तैयार हो जाएगी। अगस्त से अक्टूबर के बीच वैकल्पिक फसल का समय निर्धारित है। इसके बाद रबी की बुआई शुरू हो जाएगी बारिश नहीं होने से जिले में सुखाड़ की आहट सुनाई देने लगी है। खरीफ की खेती को काफी नुकसान पहुंचा है।
बारिश नहीं होने से किसान मायूस हैं। धान का बिचड़ा तैयार हो गया है, लेकिन पानी नहीं रहने से रोपनी नहीं हो रही है। अभी तक 80 प्रतिशत से अधिक रोपनी हो जाती थी। लेकिन इस बार 15 प्रतिशत ही रोपनी हो पाई है। अभी भी बारिश होने पर किसानों को खेत तैयार करने में एक सप्ताह लग जाएगा। अधिकांश जगहों पर बिचड़ा सूखने लगा है।
फसल लक्ष्य बीज की मांग
अरहर 1546 हेक्टेयर 4309 क्विंटल
मक्क 12413 हेक्टेयर 2482.7 क्विंटल
उड़द 2468 हेक्टेयर 493क्विंटल
तोड़िया 11050 हेक्टेयर 552 क्विंटल
अगात सरसों 5813 हेक्टेयर 290 क्विंटल
आगत विकल्पों की पैदावार मटर 335 हेक्टेयर 268 क्विंटल
भिंडी 144 हेक्टेयर 17.28 क्विंटल
मूली 138 हेक्टेयर 16.56 क्विंटल
पालक 87 हेक्टयर 21.75 क्विंटल
नुकसान की होगी भरपाई
कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि बिहार में धान व गेहूं की पैदावार पर विशेष तौर पर जोर दिया जाता है। अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होता। वहां इसका अल्टरनेटिव खेती की जाती है। उन्होंने बताया कि यहां भी धान - गेहूं को छोड़कर मक्का, अरहर, दलहन व सब्जी जैसे फसलों को लगाना चाहिए। जिसमें कम पानी की खपत होगी। साथ हीं आपलोगों को अन्य फसलों के तीन गुना ज्यादा मुनाफा भी होगा।
तैयारियां पूरी, होगी वैकल्पिक खेती
सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए वैकल्पिक खेती की तैयारी की जा रही। सर्वे कराया गया है। विभाग के पास किसानों का पूरा डाटा उपलब्ध है। मुख्यालय में बीज उपलब्ध है। किस आधार पर बीज का वितरण होगा। इस पर निर्णय सरकार के स्तर से होनी है। बीज की डिमांड भेज दी गई है। -संतोष कुमार सुमन, जिला कृषि पदाधिकारी, नवादा
निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता सघन खेती के लिए सबसे उपयुक्त है?
University Grants Commission (Minimum Standards and Procedures for Award of Ph.D. Degree) Regulations, 2022 notified. As, per the new regulations, candidates with a 4 years Undergraduate degree with a minimum CGPA of 7.5 can enroll for PhD admissions. The notification for the 2023 cycle is expected to be out soon. The UGC NET CBT exam consists of two papers - Paper I and Paper II. Paper I consists of 50 questions and Paper II consists of 100 questions. By qualifying this exam, candidates will be deemed eligible for JRF and Assistant Professor posts in Universities and Institutes across the country.
जैविक खेती के लिए छोड़िए रासायनिक कीटनाशक, नीम से घर पर ही बनाइए इसका विकल्प
इन दिनों बाजार में असली के साथ-साथ नकली कीटनाशक भी बिक रहे हैं. किसान बिल न लेने के चक्कर में नकली कीटनाशक ले बैठते हैं. ऐसे में आप अपने घर पर ही नीम के जरिए दवाई बनाकर उसे छिड़क सकते हैं.
आजकल ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती की काफी बात हो रही है. इसके लिए रासायनिक विकल्पों की पैदावार कीटनाशकों को छोड़ना होगा. लेकिन रासायनिक कीटनाशकों को छोड़ेंगे तो फिर उसका विकल्प क्या है. लेकिन अब आपको विकल्पों की पैदावार चिंता करने की जरूरत नहीं है. अगर आप पौधों को कीट के खतरों से बचाना चाहते हैं तो आप घर पर नीम की स्प्रे बना कर पौधों पर छिड़क सकते हैं, जो कि आपके पौधों के विकास में काफी ज्यादा मददगार भी साबित हो सकती है. इससे किसान को कीटनाशकों के मोटे खर्च से भी बच सकेंगे.
इन दिनों बाजार में असली के साथ-साथ नकली कीटनाशक भी बिक रहे हैं. किसान बिल न लेने के चक्कर में नकली कीटनाशक ले बैठते हैं. जिससे खेती को नुकसान होता है. कीटनाशकों पर 18 फीसदी जीएसटी है. जिसकी वजह से खासतौर पर छोटे किसान बिल पर पेस्टीसाइड नहीं खरीदते. ऐसे में आप अपने घर पर ही नीम के जरिए इसका विकल्प तैयार सकते हैं.
नीम का घरेलू कीटनाशक
पौधों को कीटों और कीड़ों से बचाने के लिए लोग कई तरह के बाजारी रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. जिससे पौधे तो इस समस्या से बच जाते हैं, पर उनकी प्राकृतिक गुणवत्ता कम हो जाती है. तो ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे घरेलू कीटनाशक के बारे में बतायेंगे जो आपके पौधों को अच्छी सेहत के साथ-साथ अच्छी उपज भी देने में मदद करेगा.
घर पर बनाएं जैविक कीटनाशक
हमारे देश में नीम व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला पौधा है. क्योंकि इसमें एंटिफंगल, जीवाणुरोधी और एंटी-कार्सिनोजेनिक गुण पाए जाते हैं. इसके साथ ही ये कीट के खतरे को कम करने में भी सहायता करता है. क्योंकि नीम के तेल का अर्क कार्बनिक अवयवों से बना है जो अपने मजबूत कड़वे स्वाद और तेज गंध के कारण हानिकारक कीड़ों को पौधों से दूर करने में लाभकारी है और यह पालतू जानवरों के लिए भी पूरी तरह से सुरक्षित है.
घर पर नीम का कीटनाशक बनाने का तरीका
ओखल में हरी मिर्च और लहसुन विकल्पों की पैदावार की फली डालकर अच्छी तरह से मूसल से पीस लें. फिर यह जब अच्छी तरह मिक्स हो जाए तो उबले हुए चावल के पानी में पेस्ट डालें. फिर मिश्रण बनने के बाद कुछ दिनों के लिए या कम से कम रात भर के लिए अलग सुरक्षित जहग पर रखें. फिर मसाले को पानी में लहसुन और हरी मिर्च में अच्छी तरह मिलाएं. फिर लहसुन और मिर्च के छिलके निकालने के लिए पानी को छान लें. ताजे निकाले गए पानी में दो से तीन चम्मच नीम के तेल का अर्क मिलाएं. इस मिश्रण को एक स्प्रे बोतल में डालें और इसे पानी में डाल कर पतला कर लें. फिर तैयार घोल को प्रभावित पौधे या पत्तियों पर छिड़काव करें.
कब करना चाहिए इसका इस्तेमाल
रोगग्रस्त क्षेत्रों पर हर दूसरे दिन स्प्रे करें, जब तक कि आप यह न देखें कि कीड़े या संक्रमण गायब हो गए हैं. जल्दी ही नतीजा पाने के लिए इसका कम से कम एक सप्ताह तक लगातार उपयोग करते रहें.
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